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जीवन के प्रति / विमल राजस्थानी
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11:25, 21 अक्टूबर 2012
भीतर का गूँज नहीं जानी, कोलाहल मन बहला न सका
बच
गयींे
गयीं
उमरिया के खाते
थोड़ी-सी सपनों की बातें
मरूधर की प्यार प्रबल थी, पर
आशिष पुरोहित
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