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जीवन के प्रति / विमल राजस्थानी

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भीतर का गूँज नहीं जानी, कोलाहल मन बहला न सका
बच गयींे गयीं उमरिया के खाते
थोड़ी-सी सपनों की बातें
मरूधर की प्यार प्रबल थी, पर
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