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जीवन के प्रति / विमल राजस्थानी

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इस जग में बस, केवल तुम ही वह गीत
जिसे मैं गा न सका।
वेदना तृषा से तड़प गयी, प्यासी रह गयी टीस क्वाँरी
आँसू तो बहुत दिये तुमने, मैं पीड़ा को नहला न सका
कहने को तो क्या-क्या न मिला
किस्मत से मुझको नहीं गिला
उँगलियाँ तुम्हीं ने तो छूकर-
दे दिया हठीलापन इनको
तुमने दी बीन थमा मुझको, मैं उसके तार बजा न सका

समझा तितली को, फूलों को
जाना दर्दीलें शूलों को
देखा धरती का दिन मैंने
अभिमान गगन का पहचाना
भीतर का गूँज नहीं जानी, कोलाहल मन बहला न सका

बच गयीं उमरिया के खाते
थोड़ी-सी सपनों की बातें
मरूधर की प्यार प्रबल थी, पर
मिल गया कहीं पलकों भर जल
यह बात गलत है मैं उससे थोड़ी भी प्यास बुझा न सका

आँखें खोलीं, तुम बड़े हुए
जग के पैरों पर खड़े हुए
दुनिया के कब कुछ फुर्सत दी
नख-शिख तक तुम्हें निरखने की
रह गया अपरिचित मैं तुमसे, अपना परिचय दुहरा न सका

अब तो यह खेल खत्म होगा
शायद दूसरा जन्म होगा
पर स्मृतियाँ धोखा देंगी, कागज कोरा रह जायेगा
यह सत्य कुरेदेगा अह-रह-पाकर भी तुमकों पा न सका