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जीवन के प्रति / विमल राजस्थानी

349 bytes added, 11:30, 21 अक्टूबर 2012
नख-शिख तक तुम्हें निरखने की
रह गया अपरिचित मैं तुमसे, अपना परिचय दुहरा न सका
 
अब तो यह खेल खत्म होगा
शायद दूसरा जन्म होगा
पर स्मृतियाँ धोखा देंगी, कागज कोरा रह जायेगा
यह सत्य कुरेदेगा अह-रह-पाकर भी तुमकों पा न सका
</Poem>
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