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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'| संग्रह =
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रख के मेज़ों पे जो भारत का अलम बैठे हैं
जाहिरन खा के वो ओहदे की कसम बैठे हैं
बुझ रहे हुस्न के हुक्के को तेरे अब भी 'रक़ीब'
गुड़गुड़ाने के लिए भर के चिलम बैठे हैं
</poem>
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