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फिर खिलखिला उठा किसी नादान की तरह / ‘अना’ क़ासमी
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08:05, 11 मई 2013
इक इक अदा में वो ही बहर वो ही बांकपन
पढ़ता
हँू
हूँ
उसको मीर के दीवान की तरह
बातें हैं सर्दियों में उतरती है जैसे धूप
संासें हैं गर्म रात के तूफ़ान की तरह
कह दे कोई तो चैन से इक रात सो
रहँू
रहँ
बैठा हूँ अपने घर में ही मेहमान की तरह
वीरेन्द्र खरे अकेला
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