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<poem>दिन दूणी-रात चौगुणी
बधती मूंगारत
अर घटतो हेत,
मन नैं घणो दुखावै है।
चौमासा रो पाणी
गळा सूं ऊंचो निकळ’र
आंख्या में घुसबा को
जतन कर रैयो है।
गरीब तो
गरीब ई रैयग्या
अमीर भळै अमीर होयग्या।
तनखा खूट जावै घड़ी’क में
सरीर में पेट लार बैवण रो कसूर
आदमी रो तो नीं है।
बधती मूंगारत
घटतो हेत
मिनख-जमारो
जीव घणो दुखावै है।</poem>
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