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और हंसो.... / नीरज दइया

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{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह= उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>जरूरी है
हवा का चलना
दिन का ढलना
मैसम का बदलना

जरूरी है
शब्द का आना
गीत का गुनगुनाना
कवि का फुसफुसाना

जरूरी नहीं है
बच्चे का तितली पकड़ पाना
आप कहे रुको तो रुकना....
और हंसो.....।</poem>
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