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01:03, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>पहाड़ पर चढ़ा आदमी
चिल्लाता है जोर से।
जिसे वह पुकारता है
पहाड़ भी पुकारते हैं उसे
उसके साथ....
पहाड़ चाहते हैं
मिल जाए वह उसे
वह चाहता है जिसे।
कहता है मेरा मित्र-
बच्चे हैं पहाड़
वे अपने आप नहीं बोलते
देखो मैं समझाता हूं तुम्हें-
मैं बोलूंगा- एक
पहाड़ भी बोलेंगे- एक...
फिर वह हंसने लगा।
हंसने लगे पहाड़ भी! </poem>