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01:16, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम सोती हो
घोड़े बेचकर
उन्हीं घोड़ों को लेकर मैं
निकलता हूं-
ढूंढऩे तुम्हें।
नींद में
फैली है कितनी जमीन
जब ढूढ़ते-ढूढ़ते हार जाता हूं,
उचट जाती है ।
मैं जाग कर सबसे पहले
घोड़ों को पिलाता हूं पानी! </poem>