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01:19, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जपता हूं मैं
नाम तुम्हारा
या जपती है देह
नाम तुम्हारा?
तुम नदी हो या सागर
मैं बुला रहा हूं तुम्हें
या तुम ही आ रही हो दौड़ती हुई
मेरे पास....
·हीं ऐसा तो नहीं
·ि बुलाती हो तुम
और दौड़ रहा हूं मैं!
खैर जो भी हो
मिलना तो तय है-
हमारा!</poem>