Changes

छागदान / भीमनाथ झा

2,348 bytes removed, 01:30, 5 जून 2013
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
अपन गामक मरिचा बाधकि झौआकोठी गाछी दिसनवी पोखरिक मोहारकि बनकुबा बाबाक थान दिसजारके कहलक जे-ठार पड़ौ कि होउ गुमकी-झरकीउमड़ि अबौ मेघ कि रमकौ बासन्ती सिहकीनौटंकी एहि बेर नहि भ’ सकलै कोइलखमे...अहलभोरेसँ पसर चरबैतटाँगल नहि जा सकलै नाटकोक पर्दा...महिसिक पीठ नागाड़ा पर बैसल कि ओकर रीढ़क चमड़ी बकुटनेचोट पड़ि नहि सकलै...लम्बमान भेल चरबाहअलबेला स्वरमे संगीतदुर्योधन-संधान करै छल।दुश्शासनक पोशाककने थम्हि क’-माल-जालकें चर’ लेल अनेर छोड़ि दैतआ मचलैत किशोर दल उन्मुक्त तान हेरै छल।फेर कने थमिह क’-छागर-पाठी हँकैत टेल्ह सभअनायासे कोनो भनिता ध’ लै छल।फेर कने थमिह क’-कोनो प्रौढ़धएने कान्ह पर कोदारिआ कोनो बूढ़ छिट्टा-खुरपीकें माथ पर उघने चलैतअल्हा-रूदल कि लैला-मजनूकि लोरिक-बनिजारा कि दीनाभद्रीसैंतले रहि गेलै बकासमे...कि राय रनपाल महागाथाक टुकड़ी अलापै छल।देखि नहि सकल भद्रकाली,अपन कानसँ ई सभ सुनैत रही जहिया।तमासा एहि बेर दशमीमे....तँ सत्ते कहै छीने नाटक ने नौटंकीबुझि पड़ए हमराकिछु ने भ’ सकलै नवमीक राति...प्रकृति जेना अपनहिंसँ भास उठा लेने हो !नगाड़ा एहि बेर गरमा नहि सकलै एक टोलक...
अपन गामक ओहि दलानसँ कि ओहि खरिहानसँ कत’सँ पड़ल ई सभ स्वरसितलपाटी पर कि खिनहरि-चटकुन्नी परखजुरपटिया पर कि फटलाहा सपटा परघोदमोद बैसल चटिया सभकखाँत रटैत कि ककहरा घोंखैतउठैत अनघोलजहिया साँझ-प्रात हमर कानमे पड़ैत रहएतँ सत्ते कहै छीबुझि पड़ए हमरासोहरा रहल होथिन अहा ! नेना सभक चानि?स्वयं भारतीअविश्वसनीय..
अपन गामहम तँ स्वयं सुनि अएलहुँओहि दरबज्जा पर कि ओहि गोला पर एहि दशमीमेभगवतीनाथक ओहि चबूतरा परघर-घरसँ उठैत मंत्रोच्चार...कि स्कूलक ओहि मैदानमेमन्दिरक चारू दिस गज्जलखादीभण्डारक ओसार परदुर्गापाठी गौआँ भक्तसमूहककि चौक परक दोकानमेगगन-भेदन करैतअस्पतालक आगाँमेढोंढ़ीसँ अबैत स्वरक असि-झंकार-कि युवक संघक अँगनैमे‘या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थितातेसर पहर दिन झुकितेनमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’सतरंजक स’हपर कि कोनो गुलछर्राक त’ह परस्वयं देखि अएलहुँ एहि दशमीमेगाम भरिक सभ फरिकदुमस्सू-तिनमस्सूसभ तूरक लगखिच्चा छागरक बलि पड़ैत घड़ी-दूरकघड़ी...सभ भाँतिक, सभ काँतिकओकर मूड़ी कटल धड़नातिसँ ल’ क’ नाना धरिछटपटाइत..कतहु क्यो अपन बात पर जोर दैतचारू खूर हवामे तनाइततँ कतहु खाँटी गप्पक बोर दैतहवामे किछु लिखैतकतहु क्यो एकान्ती करैत...खसैत...फेर उठैत....घड़ी-घड़ी....तँ कतहु काव्यचर्चा मन्दिरक परिसर रक्तस्नात होइतउमड़ैत हास-उल्लासक मानसरोवरमेघड़ी-घड़ी...अवगाहन करैतभक्तलोकनिक आननअपन समाजकें देखैत गर्म रक्तक गाढ़ ठोपसँभगवतीक पीड़ी पर कान पटपटबैतदाँत कीचै-घड़ी-घड़ी...भद्रकाली ओकरा दिसएकटक ताकि रहल छलथिन....से साफ-साफ देखि आएल रही जहियाहमतँ सत्ते कहै छीआ तही कालबुझि पड़ए हमरामन्दिरक प्राँगणमेजेना गाछक सिंहारभक्तगणक गुरू-गम्भीर स्वरकेंतुबिगुँजैत सुनि आएल रही-तुबि क’ झहरै ‘या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थितानमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः’-घड़ी-घड़ी...भगवतीक अधरतखन विस्फारित भ’ जाइत छलनिसे साफ-साफ देखने रही हमआ लगले छोड़ि देने रही गाम....सूनल पछाति-ओहि रातिजगन्माया लीला देखा देने रहथिकृदुमस्सू-तिनमस्सू छागरएक नहिदू नहितीन-तीन टाकटि चुकल छल !....हाथ-पयै हवामे तनाइतशून्यमे किछु लिखि रहल छल...भ’ गेल छल मन्दिरक परिसररक्तस्नात ओहि राति....
अपन गाममेभद्रकाली स्वयंड्योढ़ीटाटक भीतरसँ अबैतनाटक खेला रहलि छली एहि बेर....ललना लोकनिक कण्ठ-मधुमे बोरलनौटंकीक नगाड़ा अपने हाथसँविद्यापतिपीटि रहलि छली...दुर्योधन-मधुप-रवीन्द्रक गीतामृतदुश्शासनक पोशाकदनादन बकसासँ बहार कर’ लगली....कि ता मोन पड़ि गेलनिअपन पीड़ी लगक दिनका दृश्यखिच्चा छागरक पटपटाएक कान...दाँत कीचब...आ फेर हुनक अधर विस्फारित भ’ गेलनि....पीबैत रही जहियाकटाइत रहल अछि सभ दिनतँ सत्ते कहै छीछागरे दशमीमे...बुझि पड़ए हमराभद्रकालीकें ओकरे रक्तसुरमे जेना शरदा अपनहिं समा मने, सर्वाधिक प्रिय भ’ गेल होथि !छनि आब....
अपन गाममेजनिका पर नजरि पड़एआब तँजनिकें गप्प होअएमधु-रहथु गोनू बाबा कि जयनन्दन बाबाजवान किसुन बाबू की बलदेव बाबूभुल्लु बाबू कि कुल्लू बाबूजिबछी कि किसुनमाकैटभ, शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुरसभमे आपकतास्वयं मुधकलश ल’ क’सभ ठाँ सिनेह-भावभगवतीक आराधनामेसर्वत्र ममतानिमग्न रह’ लागल अछि...जेम्हरे जाइ तेम्हरेओकरा लेल उठलजे भेटए सैह रक्तपिपासु अमोघ स्वर्गसत्ते कहै छीओहि उद्गारतखन भद्र-आपकतामेअबोधबुझि पड़ए हमराजेना अपन हृदय सुमनहमरा पर झहरा देथि !आइयो अपन गाम अछि वैहअपन डीहदुमस्सू-डाबर, अपन धाम अछि वैहतिनमस्सूओहिना सभक घर-आँगनओहिना दरबज्जा, ओहिना दलानआइयो लगैत अछि मरिचासँबनकूबा थानसँओहनाहे स्वरा-संधान भोर-साँझआइयो गुँजैत अछि खरिहान खिच्चा छागर परचटिया सभक ककहरा-पाठ आइयो भगवती थानमेजुटैत अछि नानासँ नाति धरि(क्यो छरपैत तँ क्यो ठेंगा टेकैत) कतोक आँगनसँविद्यापति-मधुर गुंजनआइयो कतेको गोटे हमरासँ पुछैत अछिकुशल-क्षेमहाल-चालमुदा सत्ते कहै छीआइ एहि वाणीमेभेटै-ए कत्तौ नहि आह ! मुक्त हास आबदूर-दूर धरि हृदय-सरितामे तकैत छीगोर-गोर लोकक-कमल मुदा मौलाएल ! आइयो अपन गाममेढोल पर, डम्फा पर थाप तँ पड़िते अछिकत’ बजरनुमुदा आब ओकर स्वरजेना विरस-विरस बुझाइए !रंग तँ आइयो खेलाएले जाइत अछिभद्रकालीकआब मुदा, लोकक मुँहअरे ! बेदरंग भ’ जाइत छैक !बसन्त अपन गाममे तँ आइयो अबैत अछिमुदा सलगाँस मुँह लोक झपनहिं रहैत अछि !कुशल-क्षेम पुछनिहारआइयो भेटैत अछिमुदा आँखिक पुतरी ओकर कोनादन नचैत छैक !लोकक चेहरा तँ चीन्हल बुझि पड़ै-एआइ अपन गामे मुदा अनभुआर लगैत अछि।?
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,244
edits