{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
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|voiceof=अज्ञात
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{{KKPrasiddhRachna}}
<poem>
बीती विभावरी जाग री ! अम्बर पनघट में डुबो रही- तारा-घट ऊषा नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,अम्बर पनघट में डुबो रहीकिसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाईतारा- मधु मुकुल नवल रस गागरी ।घट ऊषा नागरी!
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहाकिसलय का अंचल डोल रहालो यह लतिका भी भर लाई-मधु मुकुल नवल रस गागरी अधरों में राग अमंद पिए,अलकों में मलयज बंद किए- तू अब तक सोई है आली ! आँखों में भरे विहाग री ।!
</poem>