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तुम्हारा वक़्त / अरुण देव

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कुछ चीज़ें अभी भी रह गई हैं
मटमैली नदी की धार के पत्तों पर रखा दीप, जलता बुझता फिर भी जलता हुआ
रह गईं हैं छत पर ओंस ओस की बून्दें
बून्दों में चमकता जल
जल से बह निकला सूरज का सुनहलापन
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