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गुन के गाहक / गिरिधर
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गुन के
गुनके
गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक
गुन के
गुनके
॥
Pratishtha
KKSahayogi,
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