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गुन के गाहक / गिरिधर
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गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥