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पांती / श्याम महर्षि

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|संग्रह=अड़वो / श्याम महर्षि
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<Poempoem
न्यारा निरवाळा हुया
जणा पांती करीजी भींता री
इण सोच माथै
जी मिचळावै अर माथै मांय जुळबुळाबै कीड़या
 </Poempoem>
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