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रिस्ता / शिवदान सिंह जोलावास

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<poem>भरोसा री भींत माथै
ऊभा है रिस्ता।

चांद, तारा, समंदर अर बिरखा
फगत झूठा दिलासा है।

साच पूछो तो
पसीनै री गंध
अर लहू सूं काठा बंध्योड़ा है
रिस्ता।</poem>
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