754 bytes added,
13:06, 23 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तू उधर था, इधर हो गया
ख़ूबसूरत सफ़र हो गया
आंख नम हो गर्इ क्यों तेरी
क्या कोर्इ दर बदर हो गया
चांदनी खिड़कियों पर मिली
चांद आशुफ़्तासर हो गया
बेबसी बेरुख़ी बन गर्इ
जब से मैं मोतबर हो गया
मुझ पे उसका करम है 'कंवल'
वो मेरा हमसफ़र हो गया
</poem>