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06:42, 2 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गिरिराज किराडू
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
अलंकारहीन भाषा में
जिसमें कोई कपट न हो
कोई रूपक न हो
क्षमा मांगनी है तुमसे
क्षमा करो कि प्रेम करता हूँ तुमसे
यूं खो तो तुम्हें तभी दिया था जब कहा था प्रेम करता हूँ तुमसे
</poem>
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