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08:55, 2 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कुछ बड़ाई अगर नहीं रखते।
हो सके कुछ न तो बड़े हो कर।
दुख कड़ाई किसे नहीं देती।
देख लो पेट तुम कड़े हो कर।
तू न करता अगर सितम होता।
तो बड़े चैन से बसर होती।
तो न हम बैठते पकड़ कर सर।
पेट तुझ में न जो कसर होती।
हो गरम जब हमें सताता है।
हो नरम जब रहा भरम खोता।
पेट! दे तो बता मरम इस का।
क्यों रहा तू नरम गरम होता।
</poem>