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पेट / हरिऔध
Kavita Kosh से
कुछ बड़ाई अगर नहीं रखते।
हो सके कुछ न तो बड़े हो कर।
दुख कड़ाई किसे नहीं देती।
देख लो पेट तुम कड़े हो कर।
तू न करता अगर सितम होता।
तो बड़े चैन से बसर होती।
तो न हम बैठते पकड़ कर सर।
पेट तुझ में न जो कसर होती।
हो गरम जब हमें सताता है।
हो नरम जब रहा भरम खोता।
पेट! दे तो बता मरम इस का।
क्यों रहा तू नरम गरम होता।