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रजनीगन्धा मेरा मानस / अज्ञेय
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07:55, 12 मई 2014
<poem>
रजनीगन्धा मेरा मानस!
पा इन्दु-किरण का नेह-परस, छलकाता अन्तस् में स्मृति-रस
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उत्फुल्ल, खिले इह से बरबस, जागा पराग, तन्द्रिल, सालस,
मधु से बस गयीं दिशाएँ दस, हर्षित मेरा जीवन-
सुमनस्
सुमनस
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लो, पुलक उठी मेरी नस-नस जब स्निग्ध किरण-कण पड़े बरस!
Sharda suman
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