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15:59, 14 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=सब के साथ मिल जाएगा / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>कब बोलेगें
झोंपड़े
हो गए पाँंच साल
सरणाटे चलते
झोपड़ों के- अंदर और बाहर
लीपे और रंगे तो जाते है
सरणाटों की आवाज
हर दीवाली पर
किसके लिए
कोई नहीं जानता
गर बोलते ये झोपड़े
तो लक्ष्मी यहां ठहरती
बिना पॉंच साल का इंतजार किए!</poem>