भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरणाटा / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब बोलेगें
झोंपड़े
हो गए पाँंच साल
सरणाटे चलते
झोपड़ों के- अंदर और बाहर
लीपे और रंगे तो जाते है
सरणाटों की आवाज
हर दीवाली पर
किसके लिए
कोई नहीं जानता
गर बोलते ये झोपड़े
तो लक्ष्मी यहां ठहरती
बिना पॉंच साल का इंतजार किए!