1,248 bytes added,
04:27, 31 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
बरसगाँठि बृषभानु-कुँवारि की कीरति गीत गवाए जू।
चंदन-अगर लिपाइ अरगजा, मोतिन चौक पुराए जू॥
नंदीसुर ते नंद जसोदा सहसुत न्यौति बुलाए जू।
गोपी-गोप, गाय-गोसुत लै चलि बरसाने आए जू॥
तब वृषभान बड़े आदर सौं निज मंदिर पधराए जू।
भीतर भवन जसोदा-कीरति मिलत परम सुख पाए जू॥
जसुमति-कनिया तैं लालन लै कीरति गोद खिलाए जू।
ब्रजरानी लइ कुँवारि गोद ब्रजनारिन मंगल गाए जू॥
</poem>