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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
रखे टोकरी सिर पर कोयल,

इठलाते इठलाते आई|

कौवे के घर की चौखट पर,

“सब्जी ले ले” टेर लगाई |



कौवा बोला नहीं पता क्या?

कितनी ज्यादा है मँहगाई|

सब्जी लेने के लायक अब ,

नहीं रहा है तेरा भाई|



ऐसा कहकर कौवेजी ने,

आसमान में दौड़ लगाई|

फिर नीचे आकर मुन्ना की,

रोटी झपटी, छीनी खाई|



कौवे की हरकत को दुनियाँ,

वालों ने समझा चतुराई|

छीन छीन कर खाने में ही,

लोग समझने लगे भलाई|



पर चिड़ियों ने चुग चुग दाना,

जीवन की सच्चाई बताई|

कड़े परिश्रम की रोटी ही,

होती है सबसे सुखदाई|
</poem>
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