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17:53, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
इक दिन घर में बनी योजना,
रसगुल्ले कुछ बनवायें|
फिर बैठक में हुआ फैसला,
कच्चा माल कहां पाएं |
खोवा लल्लू की दुकान से,
शक्कर लाला के घर से|
करें निरीक्षण खुद पापाजी,
माल ठीक से तुलवायें|
थोड़ी सी मेंदा औ काजू,
खुशबू वाले इत्र जरा,
किसी पड़ौसी के घर जाकर,
मम्मीजी खुद ही लायें|
गैस है घर में पानी घर में,
बड़ी कढ़ाई है घर में,
प्रश्न था लेकिन रसगुल्ले अब ,
किसके द्वारा बनवायें|
पापा बोले अखवारों में
विग्यापन हम देते हैं|
रसगूल्लों के सिद्धहस्त को,
अपने घर में बुलवायें|
एक किलो निर्माण कराने,
में कितना खर्चा होगा,
सभी निवेदन करने वाले,
ठीक ठीक से बतलायें|
सुनकर ये बातें मम्मी का,
पारा सौ के पार हुआ|
बोलीं चलते हैं बज़ार में,
चलकर रसगुल्ले लायें|
बात वही अच्छी होती है,
जो यथार्थ में सच्ची हो|
शेख चिल्लियों जैसे बनकर,
व्यर्थ हँसी ना उड़वायें|
</poem>