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17:59, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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|संग्रह=
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<poem>
भर्र भर्र कर बस चलती है,
टर टर टर करता स्क्रूटर|
ढर्र ढर्र कर चले टेंपो,
ट्रेन चला करती है सर सर|
तीन चके का होता रिक्शा,
दौड़े सड़कों पर फर फर फर|
किन्तु सायकिल हाय बेचारी,
दो पहियों पर चलती छर छर|
जहाँ ट्रेक्टर और बुल्डोज़र,
करते रहते घर्र घर्र घर|
वहीं लक्ज़री कारें चलतीं,
जैसे नदिया बहती हर हर|
किन्तु आदमी नामक प्राणी,
जो चलता अपने पैरों पर|
तन तंदुरुस्त रहा करता है,
रहता स्वस्थ सदा जीवन भर|
</poem>