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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
गरम दूध मुझको पिलवाते दादाजी|
काजू या बादाम खिलाते दादाजी|

थाली में भर भर कर चंदा की किरणे,
मुझे चांदनी में नहलाते दादाजी|

कभी कभी जब मैं जिद पर अड़ जाता हूं,
तोड़ गगन से लाते तारे दादाजी|

मुझको जब भी लगती है ज्यादा गरमी,
बादल से सूरज ढकवाते दादाजी|

नहीं बूंद भर पानी जब होता घर में,
आसमान में छेद कराते दादाजी|

फिर वे मेघों को आदेश दिया करते,
जब चाहे जब जल गिरवाते दादाजी|
</poem>
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