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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
देखे जब दो दर्जन चूहे,
कंडेक्टर घबराया|
सारे थे बस में सवार,
पर टिकिट एक कटवाया|

बोला दो दर्जन हो तुम सब,
सबको टिकिट लगेगा|
एक टिकिट में सब जा पायें,
यह तो नहीं चलेगा|

कंडेक्टर की बातें सुनकर,
चूहे आगे आये|
दे दो अलग अलग टिकटें,कह,
आगे नोट बढ़ाये|

पर चूहों ने शर्त रखी,हम,
अलग अलग बैठेंगे,
चौबीस टिकिट यदि लेंगे तो,
उतनी सीटें लेंगे|

चूहे की फरमाइश सुनकर,
कंडेक्टर चकराया|
एक टिकिट में ही उन सबको,
मंजिल तक पहुंचाया</poem>
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