Changes

झीने भरोसे पर / रमेश रंजक

10 bytes removed, 14:59, 20 जुलाई 2014
किसी अतुकान्त कविता-सी
हमारी ज़िन्दगी प्यासी
तुम्हारे छन्द में बँध जाए तो जानूँ —
कि तुम भी हो ।
सिमटता धूप का आँगन
अन्धेरा झर रहा छन-छन
तुम्हीं कह दो कि कब तक दूँ तसल्ली — अनमने जी को ।
थके मज़दूर-सा तम
खड़ी हूँ मूर्त्ति-सी प्रियवर
इसी झीने भरोसे पर
कि पल भर देख लो तुम अधजली इस —
मोमबत्ती को ।
 
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,606
edits