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16:02, 22 जुलाई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
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<poem>गिली-गिली गप्पा
ओके डियर
चलें जी टाटा !
हो गई बातें
बीती रातें
करी शिकायत
इधर-उधर की
छानें चप्पा !
सारा दिन
क्या करें पढ़ाई
ऐसी भी क्या शामत आई
याद करें कोई
दूजा टप्पा !
सुबह-शाम बस
एक सा कटता
देखें चँदा
बढ़ता-घटता
क्या खाएं
और क्या न खाएं
आज चलेगा
गोल गप्पा !
करेंगे मैसेज
मोबाइल पर
कभी शायरी
इस पर
उस पर
सोएंगे फिर
ओढ़ के चादर
लेंगे नींद का
बड़ा सा झप्पा !!</poem>
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