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माँ / अवनीश सिंह चौहान

11 bytes removed, 08:15, 30 अक्टूबर 2014
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<Poem>
घर की दुनिया माँ होती है माखन सुख का खुशियों की क्रीम देने परसने को वह दु:खों दुःखों का दही विलोती बिलोती है
पूरे अनुभव एक तरफ हैं मइया के अनुभव के आगे जब भी उसके पास गए हम लगा अँधेरे में हम जागे
अपने मन की परती भू परशबनम आशा की बोती है घर की दुनिया माँ होती है
उसके हाथ का रूखा-सूखा-भी हो जाता है काजू-सा कम शब्दों में खुल जाती वह ज्यों संस्कृति की हो मंजूषा
हाथ पिता का खाली हो तो
छिपी पोटली का मोती है
घर की दुनिया माँ होती है
</poem>
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