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07:45, 5 अप्रैल 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कहाँ तुम रहते हो, भगवान!
कभी न तुमको देखा मैंने,
सका न तुमको जान।
रहते हो तुम पास हमारे,
फिर कैसे लूँ मान।
तजो, अकेले रहने की,
क्यों डाली ऐसी बान।
नाथ! ऊबते होगे,
कर लो हमसे ही पहचान।
</poem>