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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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<poem>
बदलें मौसम, बदलें हम
सुख-दुख यकसा करलें हम

दुनिया भर के ग़म सारे
हँसते-हँसते सहलें हम

रोये हैं तन्हाई में
क़ुर्बत में तो हंसलें हम

छोटी-छोटी चीज़ों से
बच्चों जैसे बहलें हम

फ़ुरसत हो तो आ जाओ
कुछ सुनलें कुछ कहलें हम

इक दूजे की आँखों से
दिल में क्या है पढ़लें हम

जो भी काम अधूरे हैं
आ मिलकर अब करलें हम

आज दुआओं से अपनी
खाली झोली भरलें हम

काम 'रक़ीब' अधूरे थे
आ मिलकर अब करलें हम
</poem>
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