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बदलें मौसम, बदलें हम / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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बदले मौसम, बदलें हम
सुख-दुःख अपना समझें हम
फ़ुरसत हो तो आ जाओ
कुछ सुनलें कुछ, कहलें हम
इक दूजे की आँखों से
दिल में क्या है, पढ़लें हम
रोएँगे तन्हाई में
क़ुर्बत में तो, हंसलें हम
छोटी-छोटी चीज़ों से
बच्चों जैसे, बहलें हम
दुनिया भर के ग़म सारे
हँसते-हँसते, सहलें हम
आओ 'रक़ीब' दुआओं से
ख़ाली झोली, भरलें हम