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09:59, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
जणां-कणां
म्हैं
खुद नै
दुखी मानूं
पण जद बींनै देखूं तो
खुद नै साफ झूठो जाणूं
बो म्हारै सायनौ है/अर म्हारै दोनां रो अेक धंधो
म्हैं घरे रैवूं
‘फैमिली’ में
पण बो है परदेसी
अठै अेकलो रैवै
म्हारै सूं घणों खपै
पण फेर ई
नीं देख्यो बीं ‘नै
कदे उदास
बीं रीं रंगत देखतां
नीं लागै कै
बो रोवतौ हुसी कदे
ओलै-छानै।
</poem>
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