541 bytes added,
10:00, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
लेधे घाटौ खाय’र
खेती करै किसान
देख’र खुस होवां आपां
कै किŸाी जरणांळौ है
पण कण देख्यौ है-
मांय सूं
बो कित्तौ टूट्यो है
हार्यौ है।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader