840 bytes added,
10:04, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
जद सारी दुनिया
सोई हुसी
कंबळ अर निवायै
बिछावणां में
बो जागसी
अेक झीणी-सी चादर में
सारी रात खड़्यो-खड़्यो
का उकड़ू बैठ्यो
नींद, थकेलो अर पाळो
उडांवतो बीड़ियां रै
सुट्टां सूं
होंवता हुसी
कई कमेरा
कामचोर
पण बीं री चोरी तो
दिनूंगै ई
उघड़ ज्यावै।
</poem>