भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चौकीदार / निशान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जद सारी दुनिया
सोई हुसी
कंबळ अर निवायै
बिछावणां में

बो जागसी
अेक झीणी-सी चादर में
सारी रात खड़्यो-खड़्यो
का उकड़ू बैठ्यो
नींद, थकेलो अर पाळो
उडांवतो बीड़ियां रै
सुट्टां सूं

होंवता हुसी
कई कमेरा
कामचोर
पण बीं री चोरी तो
दिनूंगै ई
उघड़ ज्यावै।