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चौकीदार / निशान्त
Kavita Kosh से
जद सारी दुनिया
सोई हुसी
कंबळ अर निवायै
बिछावणां में
बो जागसी
अेक झीणी-सी चादर में
सारी रात खड़्यो-खड़्यो
का उकड़ू बैठ्यो
नींद, थकेलो अर पाळो
उडांवतो बीड़ियां रै
सुट्टां सूं
होंवता हुसी
कई कमेरा
कामचोर
पण बीं री चोरी तो
दिनूंगै ई
उघड़ ज्यावै।