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क़ुदरत की तो लाठी की सदा तक नहीं आती
है नाम 'रक़ीब' अपना तभी तो मेरे नज़दीक दुनिया की कोई खौफ-ओ-आफ़त का हो क्या ज़िक्र बला तक नहीं आती
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