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03:06, 30 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुंदरलाल अरुणेश
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल,
करते रहते किलबिल-किलबिल।
कुर्ता इनका बिल्कुल चिरकिट,
सिर को झिटकें जैसे गिरमिट।
पाजामा है ढिलमिल-ढिलमिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।
बात-बात में करते टिर-टिर,
चलते-चलते पड़ते गिर-गिर।
कहते हैं सब इनको पिल-पिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।
दिन भर ठुनका करते ठिन-ठिन,
लोट-लोट जाते हैं पल छिन।
बिस्कुट पाकर हँसते खिलखिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।
</poem>