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चिलबिल जी / सुंदरलाल 'अरुणेश'

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चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल,
करते रहते किलबिल-किलबिल।

कुर्ता इनका बिल्कुल चिरकिट,
सिर को झिटकें जैसे गिरमिट।

पाजामा है ढिलमिल-ढिलमिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।

बात-बात में करते टिर-टिर,
चलते-चलते पड़ते गिर-गिर।

कहते हैं सब इनको पिल-पिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।

दिन भर ठुनका करते ठिन-ठिन,
लोट-लोट जाते हैं पल छिन।

बिस्कुट पाकर हँसते खिलखिल,
चिलबिल जी हैं पूरे सिलबिल।