Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माहेश्वर तिवारी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माहेश्वर तिवारी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>पत्ते झरने लगे डाल से!
एक-एक कर-
दाँत गिर रहे जैसे-
बूढ़ी दादी के,
बर्फ पड़े तो लगते
जैसे, बिखरे
टुकड़े चाँदी के!

धीरे चलने वाला सूरज
राह नापता तेतज चाल से!

दिन छिलके उतारकर, लगते-
रक्खे उबले आलू से,
रातें लगतीं, जैसे हों-
निकलीं नदियों के बालू से!

मौसम से डर लगता
जैसे, इम्तहान वाले सवाल से!

-साभार: पराग, फरवरी, 1980, 54
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits