1,013 bytes added,
04:50, 4 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मदनगोपाल शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>ठिठुरन कंपन
अकड़ दिखाती
ठंड पड़ रही भारी,
सूरज भैया छिपकर बैठे
शायद भूले पारी।
मुनिया डर कर नहीं नहाई,
बीती बरखा सर्दी आई!
चुनमुन चिड़िया
आज न निकली
लगा रात है बाकी,
धुंध बहुत है
कुहरा छाया
काँपें बूढ़ी काकी,
बैठी रहती ओढ़ रजाई!
सच में मौसम
तनिक न अच्छा
परेशान हैं सारे,
किसी काम में
मन न लगता
बैठे हैं मन मारे,
काम चलेगा कैसे भाई?
</poem>