भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सर्दी आई / मदनगोपाल शर्मा
Kavita Kosh से
ठिठुरन कंपन
अकड़ दिखाती
ठंड पड़ रही भारी,
सूरज भैया छिपकर बैठे
शायद भूले पारी।
मुनिया डर कर नहीं नहाई,
बीती बरखा सर्दी आई!
चुनमुन चिड़िया
आज न निकली
लगा रात है बाकी,
धुंध बहुत है
कुहरा छाया
काँपें बूढ़ी काकी,
बैठी रहती ओढ़ रजाई!
सच में मौसम
तनिक न अच्छा
परेशान हैं सारे,
किसी काम में
मन न लगता
बैठे हैं मन मारे,
काम चलेगा कैसे भाई?