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15:40, 4 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>चूर हो गए होंगे थककर,
जाओ बादल अब अपने घर!
तुमने शीतल जल बरसाया,
तपती धरती को सहलाया,
बूँदों में अमृत बरसाया,
झर-झर, झर-झर, झर-झर, झर-झर!
जाओ बादल अब अपने घर!
फिर तुमको सूझी शैतानी,
सबको दुख देने की ठानी,
बरसाया जोरों का पानी,
सारे के सारे कपड़े तर!
जाओ बादल अब अपने घर!
गड़गड़ कर फिर गरजे भारी,
फैली धरती पर अँधियारी,
बिजली की चमचम थी न्यारी,
लगे काँपने बच्चे थर थर!
जाओ बादल अब अपने घर!
</poem>