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18:04, 4 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामावतार चेतन
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>पंडित जी ने खाई रोटी
उनकी बड़ी हो गई चोटी!
लालाजी ने खाई रोटी
उनकी तोंद हो गई मोटी!
बाबूजी ने खाई रोटी
उनकी कलम हो गई छोटी!
साधू जी ने खाई रोटी
उनकी चंपत हुई लंगोटी!
रोटी का है रंग निराला
बाबू, साधू, पंडित, लाला
</poem>