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12:52, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=तारादत्त निर्विरोध
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<poem>गीदड़ के घर एटहोम में
पहुँचे सारस भाई,
खाने-पीने लगे अचानक
बिल्ली भागी आई।
बोली-ठहरो, कुछ मत खाना
यह आयोजन ऐसा,
खर्च हुआ जिसमें गीदड़ का
सारा काला पैसा!
-साभार: बालसखा, 1954
</poem>