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खेल-खिलौने / विपुल कुमार

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<poem>जन्म-दिवस पर मिले खिलौने,
मुझको लगते बड़े सलोने।
पास हैं मेरे दो मृगछौने,
ढम-ढम ढोल बजाते बौने।
ठुम्मक-ठुम्मक नाचे बाला,
एक सिपाही पकडे़ भाला।
धुआँ छोड़ता भालू काला,
नाचे बंदर चाबी बाला।
नन्हा पिल्ला प्यारा-प्यारा,
अप्पू हाथी सबसे न्यारा।
छुट्टी में तो ता-रा-रा-रा,
वक्त खेल में बीता सारा।
कहीं पे चलती छुक-छुक रेल,
कहीं दिखाता जोकर खेल।
सबके बीच बढ़ाते मे,
खेल-खिलौने रेलम-पेल।
</poem>
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